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जहर जिमी दै रोपिया

jahar jimii dai ropiyaa

कबीर

कबीर

जहर जिमी दै रोपिया

कबीर

और अधिककबीर

    जहर जिमी दै रोपिया, अमी सींचे सौ बार।

    कबीर खलक ना तजै, जामें जौन विचार॥

    यदि जमीन में जहर का पेड़ लगा दिया गया है तो उसे सौ बार भी अमृत से सींचने पर उसका जहर नहीं जा सकता। सद्गुरु कहते हैं कि इसी प्रकार जिसके मन में जो उलटे-सीधे विचार धंस जाते हैं, वे उसे नहीं निकालते, चाहे उन्हें सैकड़ों बार सत्योपदेश दिए जाएं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीजक: पारख प्रबोधिनी व्याख्या (पृष्ठ 453)
    • संपादक : अभिलाष दास
    • रचनाकार : कबीर
    • प्रकाशन : कबीर पारख संस्थान
    • संस्करण : 1969

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