Font by Mehr Nastaliq Web

हलन चलन की सकति है

halan chalan ki sakati hai

वृंद

वृंद

हलन चलन की सकति है

वृंद

और अधिकवृंद

    हलन चलन की सकति है तौ लौं उद्यम ठानि।

    अजगर ज्यौं मृगपति बदन मृगन परतु है आनि॥

    भावार्थ: कवि कहते हैं कि मनुष्य के शरीर में जब तक हिलने−डुलने की शक्ति रहे, तब तक उसे कार्यरत रहना चाहिए अर्थात् उसे परिश्रम करते रहना चाहिए। परिश्रम करने से ही जीवन की सार्थकता है, बिना परिश्रम के जीवन का कोई भी अस्तित्व नहीं है। अजगर की तरह शेर भी जब परिश्रमहीन हो जाता है तब उस शेर के मुख में हिरण अपने आप आकर नहीं गिर जाया करता है, अर्थात् व्यक्ति के लिए परिश्रम करना ही उपयुक्त है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सतसइ सप्तक (पृष्ठ 287)
    • रचनाकार : Editor-Shyamsundar Das
    • प्रकाशन : हिंदुस्तानी एकेडमी
    • संस्करण : 1931
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY