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दृग मिहचत मृग-लोचनी

drig mihchat mrig lochni

बिहारी

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दृग मिहचत मृग-लोचनी

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    दृग मिहचत मृग-लोचनी, भर्यौ उलटि भुज, बाथ।

    जानि गई तिय नाथ के, हाथ परसहीं साथ॥

    नायक ने अनजाने ही पीछे से आकर नायिका के दोनों नेत्र बंद कर लिए हैं। ऐसी स्थिति में नायिका उसे कैसे पहचाने? अत: वह अपनी भुजाओं से उसका स्पर्श करके पहचानना चाहती है कि उसकी आँखें बंद करने वाला कौन है? एक सखी दूसरी सखी के समक्ष वर्णन करते हुए कह रही है कि नायक द्वारा आँख मूंदते ही उस मृगनयनी नायिका ने अपनी भुजाओं को पीछे करके नायक को अंक में भर लिया। वह नायिका हाथ से छूते ही अपने पति के हाथ पहचान गई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 288)
    • संपादक : हरिचरण शर्मा
    • रचनाकार : बिहारी
    • प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
    • संस्करण : 2007

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