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मलयागिर की बास में

bedhhaa dhaank palaas

कबीर

कबीर

मलयागिर की बास में

कबीर

और अधिककबीर

    मलयागिर की बास में, बेधा ढाँक पलास।

    बेना कबहुँ बेधिया, जुग-जुग रहिया पास॥

    ढांक-पलाश जैसे साधारण पेड़-पौधे भी सरस होने से मलयगिरि की सुगंध में सुवासित होकर चंदन बन जाते हैं। परंतु बांस-जैसे बड़े वृक्ष भी गांठदार, पोले तथा नीरस होने से मलयगिरि की सुगंधी को नहीं ग्रहण कर पाते, भले ही वे मलयगिरि के पास बहुत काल से रहते हों। इसी प्रकार साधारण मनुष्य अपनी विनम्रता के कारण सत्संग से लाभ लेकर महान हो जाते हैं, परंतु बड़प्पन के अहंकारी लोग चाहे नित्य साधुजनों के पास ही रहें, उनसे कोई लाभ नहीं ले पाते।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीजक: पारख प्रबोधिनी व्याख्या (पृष्ठ 418)
    • संपादक : अभिलाष दास
    • रचनाकार : कबीर
    • प्रकाशन : कबीर पारख संस्थान
    • संस्करण : 1969

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