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बेड़ा बाँधिन सर्प का

bedaa baandhin sarp kaa

कबीर

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बेड़ा बाँधिन सर्प का

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और अधिककबीर

    बेड़ा बाँधिन सर्प का, भवसागर के माँहिं।

    जो छोड़े तो बड़े, गहै तो डँसे बाँहिं॥

    कई लोगों ने कई सांपो को एक में बांधकर उसका बेड़ा बनाया और उसी को पकड़कर समुद्र पार करने लगे। अब यदि उस बेड़े को छोड़ते हैं तो समुद्र में डूबते हैं और यदि उसे पकड़े रखते हैं तो वे बेड़े के सांप उनके हाथ काटते हैं और उन्हें विष से बेभान करते हैं। ये अबोधमिश्रित ज्ञान,कर्मकांड एवं देवी-देवादि की उपासनाएं सांपों के बेड़े हैं। मनुष्य इन्हीं द्वारा संसार-सागर से पार होना चाहता है। यदि बिना स्वरूपज्ञान के इन्हें छोड़ता है, तो भोगवादी होकर संसार-सागर में एकदम डूब जाता है और यदि जीवनपर्यंत इन्हीं में पड़ा रहता हौ, तो इनके विष से आक्रांत होता है। अतएव पारखी-विवेकी का सत्संग करते हुए स्वरूपज्ञान पाकर इन्हें छोड़ना चाहिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीजक: पारख प्रबोधिनी व्याख्या (पृष्ठ 541)
    • संपादक : अभिलाष दास
    • रचनाकार : कबीर
    • प्रकाशन : कबीर पारख संस्थान
    • संस्करण : 1969

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