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दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : तीन और चार

dusri golmez parishad mein gandhi ji ke saath ha teen aur chaar

घनश्यामदास बिड़ला

घनश्यामदास बिड़ला

दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : तीन और चार

घनश्यामदास बिड़ला

और अधिकघनश्यामदास बिड़ला

    31 अगस्त , ‘31

    ‘राजपूताना जहाज़’

    पंडित जी भी बात सुनिए। आज तीसरा दिन है पर पंडित जी की प्राय: एकादशी ही चलती है बात यह है कि पंडित जी का रसोईया बीमार है और आटे-सीधे के बक्से का कहीं पता नहीं। पंडित जी से लाख प्रार्थना की कि महाराज, बोट का चावल-आटा लेना बुरी बात नहीं है किंतु पंडित जी कहते हैं कि भूख लगेगी तब ले लेंगे, अभी भूख नहीं लगी है, तबीयत सुधर रही है परसों और कल तू थोड़ा-थोड़ा दूध ही लिया। सामान की पेटी के लिए सारा जहाज़ छान डाला किंतु वह भी ऐसी ग़ायब हुई कि पूछिए। पंडित जी ख़ुद तो खाते नहीं अपने रसोइए से कहते हैं—बैजनाथ थोड़ा खा लो बैजनाथ क्या खाए? पेटी तो ब्रह्मलोक चली गई, जहाज़ का सामान अभी तक पंडित जी ने लेना स्वीकार नहीं किया। पर आज पंडित जी को मना लिया है और जहाज़ के सामान से रसोई बनेगी। पंडित जी कुछ कमज़ोर हो गए हैं लेकिन वैसे प्रसन्न है। समुद्र के तूफ़ान के कारण दो दिन कुछ व्यथित रहे। समुद्र कुछ शांत हो रहा है। शाम को रसोई भी बनेगी।

    पंडित जी ने आने में काफ़ी कष्ट उठाया है। पंडित जी की प्रकृति के मनुष्य को ऐसे सफ़र में बहुत कष्ट है, किंतु देश के लिए पंडित जी सब कुछ सहन कर लेते हैं। पंडित जी की दृष्टि में यह जहाज़ नरक है इंगलिस्तान रीरव है। आज कहते थे—तुमने अच्छी-सी केबिन मेरे लिए सुरक्षित की, किंतु वह है तो केबिन (कोठरी) ही। यदि स्वदेश का काम हो, तो पंडित जी ऐसा सफ़र करने की स्वप्न में भी इच्छा करें। पंडित जी प्रेम और आशावाद की कमी नहीं। पेटी ग़ायब हो गई, सारा जहाज़ छान डाला, किंतु पंडित जी कहते हैं की पेटी ज़रूर मिलेगी ग़ायब कैसे हो सकती है? इसका उत्तर मैं क्या दूँ?

    गोविंद जी ने पेड़ों से ही काम चलाया है। रामेश्वर जी ने तो कहा था कि ज़्यादा ले लो मगर मुझे क्या ख़बर थी कि ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने वाली है!

    1 सितम्बर, 31

    ‘राजपूताना जहाज़’

    समुद्र आज बुधवार को शांत हुआ है। सूरजिया तो अब भी बीमार है। पारसनाथ जी ने आज होश संभाला है। मैंने एक वेला भोजन नहीं किया। गांधी जी मज़े से हैं। पंडित जी की रसोई बनने लगी है—जहाज़ के सामान से ही। गोविंद जी को पेड़ों से कुछ तकलीफ़-सी हुई। महात्मा जी की प्रार्थना रोज़ सुबह-शाम होती है। हिंदुस्तानी आते हैं। अंग्रेज़ दूर से ही नज़र बचा के देखते रहते हैं। आज रात को अदन पहुँच जाएँगे। पंडित जी कहते थे कि “जहाज़ क़ैदख़ाना है देखो, कैसी लीला है! हम पैसे भी देते हैं और क़ैद में भी रहते हैं। कल बेचैन होकर कहने लगे—

    सीतापति रघुनाथजी, तुम लगि मेरी दौर;

    जैसे काग जहाज़ को सोझत और ठौर।

    और ठौर यहाँ कहाँ सूझे!

    स्रोत :
    • पुस्तक : डायरी के कुछ पन्ने (पृष्ठ 14)
    • रचनाकार : घनश्यामदास बिड़ला
    • प्रकाशन : सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1958
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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