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दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : बारह और तेरह

dusri golmez parishad mein gandhi ji ke saath ha barah

घनश्यामदास बिड़ला

घनश्यामदास बिड़ला

दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : बारह और तेरह

घनश्यामदास बिड़ला

और अधिकघनश्यामदास बिड़ला

    12 सितंबर, '31

    लंदन

    पेरिस गाड़ी सुबह 6 बजे पहुँची। वहाँ भी वही भीड़, वही चित्रवाले, वही प्रेस-प्रतिनिधि!

    11 बजे गाड़ी बूलों पहुँची यहाँ से इंग्लिश चैनल पार कर हमलोग 1 बजे फ़ोकस्टन पहुँचे। वहाँ भी ख़ूब भीड़ थी, किंतु पुलिस के प्रबंध के कारण कोई जहाज़ तक पहुँच नहीं पाता था। यहाँ दो सरकारी गाड़ियाँ आई थी। एक में गांधीजी बैठ गए, एक में मालवीयजी और मैं। पर पुलिस ने ऐसा जाल रचा था कि दोनों गाड़ियों को शुरू से ही अलग-अलग रास्तों से लंदन को रवाना किया।

    लंदन के निकट पहुँचने पर पंडितजी ने गाड़ीवान से कहा कि मुझे पेशाब करना है, पहले मुझे आर्यभवन ले चलो। गाड़ी-वान ने कहा कि महाशय, मुझे हिदायत है कि सीधे आपको सभास्थल पर ले जाऊ। (पेशाब रास्ते में ही कहीं करा सकता हूँ) मैं आर्यभवन नहीं जा सकता। मुझे ऐसा मालूम हुआ कि हम लोग क़ैदी हैं। हमें कैसा स्वराज्य मिलने वाला है, इसकी कल्पना इस स्वागत से ही की जा सकती है।

    हज़ारों आदमी विक्टोरिया स्टेशन पर, यह जानते हुए भी कि गांधीजी रेल से नहीं आएँगे, जमा थे और यद्यपि वर्षा हो रही थी, फिर भी हज़ारों आदमी सभा भवन के बाहर गांधीजी की बाट जोह रहे थे।

    यह जान लेना आवश्यक है कि इंग्लिस्तान भी एक नहीं है। एक इंग्लिस्तान है दीन-दुखियों का, ग़रीब साधारण जनता का, दरिद्र-नारायण का—जो गांधीजी का स्वागत कर रहा है; जिसे हिंदुस्तान से द्वेष है, जिसका यहाँ कोई चलन है। दूसरा इंग्लिस्तान है ठाकुरों का, जो हुकूमत करते हैं और जिनके हाथ में सत्ता है। यों कहा जा सकता है कि यदि इस श्रेणी के दस आदमी भारत को स्वराज्य देना चाहे तो दे सकते हैं। जो गांधीजी का 'हुरेहुर्रे' करके स्वागत करते है वे हज़ारों होने पर भी पंगु है। राज अब भी यहाँ ठाकुरों का ही है। कहने के लिए ही मज़दूर-पार्टी है और मज़दूर-सरकार थी। मज़दूर-सरकार ने भी जब ची-चपड़ की तो सेठों ने उधार देने से इंकार कर दिया, जिससे मैकडोनल्ड साहब को होश संभालना पड़ा, 'गांव राम' का स्वागत ठीक है, पर 'ठाकुरो' की नीयत अच्छी नहीं।

    सभाभवन में 1500 के लगभग आदमी थे, जिनमें 600 के क़रीब देशी थे। स्वागताध्यक्ष का व्याख्यान अच्छा था, किंतु गांधीजी का भाषण तो अपूर्व था। लोग बिल्कुल मोहित हो गए। बैठे-बैठे हज़ारों हैट-धारियों के बीच कमली ओढ़े गाँधीजी का प्रवचन ऐसा हुआ मानों अंगरेज़ों का ईसामसीह बोल रहा हो। गांधीजी ने कहा, तुम्हारी सरकार इस समय अपने आय-व्यय का हिसाब बराबर कर रही है, इसलिए बड़ी व्यस्त है, किंतु जबतक हमारा हिसाब बराबर करोगे तबतक तुमने कुछ नहीं किया, ऐसा समझना होगा। मैं देश-भक्त हूँ, किंतु मेरी देश-भक्ति जीव-भक्ति है। मैं सबका भला चाहता हूँ। इन बातों पर तालियों की गड़गड़ाहट हुई।

    स्वागत के बाद गांधीजी अपने डेरे गए, जो मज़दूर-मुहल्ले में है। पंडितजी आर्य-भवन में गए। सभा-भवन से निकले, तो पंडितजी गद्गद् हो गए थे। एकांत में मुझसे कहते थे कि गांधीजी के शरीर की मुझे बड़ी चिंता है, यह कपड़े नही पहनते, कहीं इनको कुछ हो जाए। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि रोग हो तो मुझे हो, मौत आए तो मुझे आए। मैंने कहा कि पंडितजी, आप अपनी ही चिंता करें, इनकी नहीं। पंडितजी बंबई छोड़ने के बाद काफ़ी दुर्बल हो गए हैं और ढीले होते जा रहे हैं। इनके शरीर की मुझे तो बड़ी चिंता है।

    13 सितंबर, '31

    'लंदन'

    गांधीजी का स्थान बहुत छोटा है, आराम भी नहीं है, किंतु लोग प्रेम से उनकी सेवा कर रहे हैं। बिना तनख़्वाह के नौकर हैं। अख़बारवाले बिना पैसे लिए अख़बार दे जाते हैं। सैकड़ों आदमी मकान के सामने खड़े जय-जयकार करते रहते हैं।

    आज रात को प्रधानमंत्री से बातें होंगी और शायद कलतक नाड़ी का पता चल जाए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : डायरी के कुछ पन्ने (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : घनश्यामदास बिड़ला
    • प्रकाशन : सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1958
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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