उपेंद्रनाथ अश्क के संस्मरण
क़लम-घसीट
‘क़लम-घसीट’ का मतलब साफ़ है...ऐसा लेखक जो सर्र-सर्र क़लम घसीटता चला जाए। लेकिन क्या हम ऐसे लेखक को, जिसकी प्रतिभा अपरंपार है और जो अपनी 'आमद' को देखकर कह उठता है...’बादल से बँधे आते हैं मज़मूँ मेरे आगे’ (लेख पर लेख, कहानी पर कहानी या कविता पर कविता लिखता
आई लाईक यू दो आई हेट यू: मंटो
मंटो मेरा दुश्मन समझा जाता था। हममें काफ़ी नोक-झोंक रहती थी और इसमें कोई संदेह नहीं कि जब तक हम साथ-साथ रहे, हमने एक-दूसरे को बड़ी कड़ी चोटें पहुँचाई। ‘कुतुब पब्लिशर्स बंबई’ ने एक पुस्तक माला निकाली थी—‘नए अदब के मेमार, उसमें उर्दू के लेखकों ने एक-दूसरे