Ravindra Kalia's Photo'

रवींद्र कालिया

1939 - 2016 | जालंधर, पंजाब

साठोत्तरी पीढ़ी के सुप्रसिद्ध गद्यकार। संपादक के रूप में उल्लेखनीय।

साठोत्तरी पीढ़ी के सुप्रसिद्ध गद्यकार। संपादक के रूप में उल्लेखनीय।

रवींद्र कालिया का परिचय

जन्म : 01/11/1939 | जालंधर, पंजाब

निधन : 01/01/2016 | नई दिल्ली, दिल्ली

हिंदी जगत में रवींद्र कालिया को एक उपन्यासकार-कहानीकार-संस्मरणकार के साथ ही एक संपादक के रूप में जाना जाता है। (क़लम ख़ुद—‘‘जालंधर में पैदा हुआ था ((11 नवंबर, 1938)। (सोलह जमातें) एम.हिंदीबी.ऑनर्सवहीं पास की पहला प्रेम (एकदम असफ़लतथा पहली नौकरी (हिंदी मिलाप वहीं की। (पहली कहानी (सिर्फ़ एक दिनयहीं लिखी। मोहन राकेशइंद्रनाथ मदानउपेंद्रनाथ अश्कनागार्जुनयशपाल जी से वहीं परिचय हुआ। आधी-आधी रात तक कुमार विकलकृष्ण अदीबसुदर्शन फाक़िरधनराजकपिल मलहोत्राअग्निहोत्रीप्रवीण शर्मासुरेश सेठहमदमशैल के साथ सड़कें नापी हैंशेर गुनगुनाए हैंगीत गाए हैंचिल्लाए हैं। दिल्ली में टी-हाउस मेरा घर और ला बोहीम मेरी ससुराल थी। एक ओर जगदीश चतुर्वेदीखोसाएम.एलओबेरॉयमेनराश्याम मोहनसुरेंद्र प्रकाशहमदमसौमित्रविमल गौड़शेरजंग गर्गप्रयागहिमांशुकश्यप आदि का परिवार थादूसरी ओर राकेशकमलेश्वर यादव का संसार या नामवर सिंहदेवीशंकर अवस्थीश्रीकांत वर्माअशोक वाजपेयीमहेंद्र भल्लाविश्वनाथ त्रिपाठी की दुनिया। मेरा प्रवेश कहीं वर्जित नहीं था। मगर राकेश मेरे लेखन से लगभग नाख़ुश थे। जल्द ही मुझे बंबई का रास्ता दिखा दिया। हाँ उन्होंने प्रतिष्ठ धर्मयुग’ पत्रिका में कार्य किया। सन् 1969 में मैं अकेला इलाहाबाद चला जाया। 1970 में ममता लियाभी नौकरी छोड़-छाड़कर आ गई)...

 

इलाहाबाद के रानी मंडी मुहल्ले में इलाहाबाद प्रेस की स्थापना की। यह जगह साहित्यिक बैठकों का अड्डा बनी रही। विकल्प, ‘पहल, ‘आधार’  जैसी पत्र-पत्रिकाएँ यहीं छपती थीं। वर्ष 1993 से 1999 तक वह गंगा-यमुना’  अख़बार के संपादक रहे। इलाहाबाद हमेशा उनके अंदर आबाद बना रहा। उन्होंने अपनी अगली पारी वागर्थ’ संपादक के रूप में कोलकाता में खेली। भारतीय ज्ञानपीठ का निदेशक बनने पर फिर वह दिल्ली आ गए और यहीं बस गए। रवींद्र कालिया ऐसे संपादक के रूप में याद किए जाते हैं जो पाठकों के नब्ज़ को और बाज़ार के तिलिस्म को बख़ूबी समझते थे। उनके संपादन कर्म के साथ उनका लेखन ज़ारी रहा और वह साठोत्तरी पीढ़ी के प्रमुख उपन्यासकार-कथाकार की श्रेणी में रखे जाते हैं। उनकी व्यंग्य रचनाएँ भी पसंद की गई हैं। एक संस्मरणकार के रूप में ग़ालिब छूटी शराब उनकी चर्चित कृति रही है। ममता कालिया ने अंदाज़--बयाँ उर्फ़ रवि कथा’  में उन्हें शिद्दत से याद किया है। 

 

प्रमुख कृतियाँ

 

उपन्यास ख़ुदा सही सलामत हैए बी सी डी, 17 रानडे रोड।

 

कहानी-संग्रह काला रजिस्टरनौ साल छोटी पत्नीगरीबी हटाओगली कूंचेचकैया नीमसत्ताइस साल की उमर तकज़रा सी रोशनी।

 

संस्मरण स्मृतियों की जन्मपत्रीकामरेड मोनालिसासृजन के सहयात्रीग़ालिब छूटी शराब।

 

व्यंग्य-संग्रह राग मिलावट मालकौंसनींद क्यों रात भर नहीं आतीतेरा क्या होगा कालिया।

 

संपादन मोहन राकेश संचयनअमरकांत संचयनवागर्थनया ज्ञानोदयगंगा-जमुना।

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