अपना मालवा खाऊ-उजाड़ू सभ्यता में
उगते सूरज की निथरी कोमल धूप राजस्थान में रह गई। मालवा लगा तो आसमान बादलों से छाया हुआ था। काले भूरे बादल। थोड़ी देर में लगने लगा कि चौमासा अभी गया नहीं है। जहाँ-जहाँ भी पानी भरा हुआ रह सकता था लबालब भरा हुआ था, मटमैला बरसाती पानी। जितने भी छोटे-मोटे