पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबंध
हिंदी का नाट्य साहित्य और उसकी गति
नाटक शब्द नट्−धातु से बना है। ‘नट’ नाच के अर्थ में प्रयुक्त होता है। अंग्रेज़ी में नाटक को ड्रामा कहते हैं। ड्रामा के लिए संस्कृत में नाटक की अपेक्षा ‘रूपक’ शब्द अधिक उपयुक्त है। ड्रामा का मूल शब्द इसी अर्थ का द्योतक है। ड्रामा उन रचनाओं को कहते हैं,
भक्त-कवि
रमेश ने कहा, संतों के काल में मनुष्य जीवन में सत्य की उपलब्धि के लिए जो चेष्टा की गई, उसका फल यह हुआ कि मनुष्यों में सत्य को मूर्तिमान देखने के लिए विकलता हुई। पहले कृच्छ साधना और उग्र साधना के द्वारा यतिगण सत्य का साक्षात्कार किया करते थे। संसार से
संगीत का महत्त्व
हम लोगों के जीवन में दो स्पष्ट धाराएँ हैं-एक है आनंद की धारा, दूसरी है कर्म की धारा। इन्हीं दो धाराओं के कारण जीवन में कभी शुष्कता, शिथिलता और विरक्ति नहीं आती। बाह्य स्थिति प्रतिकूल होने पर भी हम अपने अंतर्जगत् से प्रेरणा पाते हैं और अंतर्जगत् में भावों
क्या लिखूँ?
मुझे आज लिखना ही पड़ेगा। अँग्रेज़ी के प्रसिद्ध निबंध लेखक ए. जी. गार्डिनर का कथन है कि लिखने की एक विशेष मानसिक स्थिति होती है। उस समय मन में कुछ ऐसी उमंग-सी उठती है, हृदय में कुछ ऐसी स्फूर्ति-सी आती है, मस्तिष्क में कुछ ऐसा आवेग-सा उत्पन्न होता है कि
प्रेम और विवाह की समस्या
यह तो स्पष्ट है कि समाज की गति के साथ साहित्य भी गतिशील होता है। जो सच्चा साहित्यकार होता है, उसकी वाणी में युग की वाणी रहती है। ऐसे साहित्यकारों की रचनाओं में समस्त देश की आत्मा प्रस्फुट हो जाती है। उनके स्वर में देश की उच्चतम आकांक्षा की ध्वनि निकलती
क्यों लिखूँ?
मैंने यह सोचा है कि अब मैं अपनी बातें लिखा करूँ। उनमें मेरे कर्म-जगत् के साथ मेरे भाव जगत् की भी चर्चा हो। सभी के पास यही तो एक विषय है जो दूसरों के लिए अपूर्व है। मेरा जीवन मेरा ही जीवन है। मैंने जो कुछ अनुभव किया है, वह अन्य के लिए संभव नहीं है। क्षुद्र
सरस्वती के 60 वर्ष
जनवरी सन् 1900 में ‘सरस्वती’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ। उस समय मैं 6 वर्ष का था। उसके 12 अंक निकल जाने के बाद मेरे पिता ने एक साथ वे 12 अंक मँगवाए। तब तक मुझे हिंदी का अक्षर-ज्ञान अच्छी तरह हो गया था। ‘सरस्वती’ के वे अंक मेरे समान बालकों के लिए भी विशेष
मेघदूत में कालिदास का आत्मचरित
काव्य ही कवि का जीवन है। उसी में उसकी आत्मा निवास करती है। यदि हम किसी कवि का वास्तविक रूप देखना चाहते हैं तो हमें उसके काव्यों का अवलोकन करना चाहिए। उनसे हम कवि के जीवन के विषय में कुछ बातें अवश्य जान सकते हैं। कवि का किस पर अनुराग था, किससे घृणा थी,
मैं क्या पढूँ?
60 वर्षों से उपन्यास और कहानी पढ़ता आ रहा हूँ—एक छात्र के रूप में और फिर एक अध्यापक के रूप में। दोनों ही स्थितियों में मैं पाठक ही रहा हूँ। छात्रावस्था में सभी लोगों के लिए संसार रहस्यमय रहता है। उसी के साथ हम लोगों के हृदय में जो एक महत्त्व की आकांक्षा
कला
सभ्यता आवश्यकताओं की जननी है, और आवश्यकता आविष्कारों की। सभ्यता के आदि-काल में मनुष्यों की आवश्यकताएँ परिमित होती थीं, अतएव उनकी पूर्ति के लिए उन्हें विशेष परिश्रम भी करना पड़ा। प्रकृति से ही उन्हें अपने जीवन की सभी सामग्री मिल जाती थी। तब प्रकृति के
भारतीय कथा−साहित्य का विकास
भारतीय उपन्यासों का आधुनिक रूप हम लोगों को पश्चिम से ही मिला है। परंतु यह नहीं कहा जा सकता कि भारतीय कथा−साहित्य के विकास में एकमात्र पाश्चात्य साहित्य का ही प्रभाव पड़ा है। भारतीय कथा−साहित्य के विकास में एकमात्र पाश्चात्य साहित्य का ही प्रभाव पड़ा