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राजकमल चौधरी

1929 - 1967 | महिषी, बिहार

अकविता दौर के कवि-कथाकार और अनुवादक। जोखिमों से भरा बीहड़ जीवन जीने के लिए उल्लेखनीय।

अकविता दौर के कवि-कथाकार और अनुवादक। जोखिमों से भरा बीहड़ जीवन जीने के लिए उल्लेखनीय।

राजकमल चौधरी की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 24

कहानी 1

 

उद्धरण 30

‘तत्काल’ के सिवा और कोई काल चिंतनीय नहीं है।

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प्रकृति, आदर्श, जीवन-मूल्य, परंपरा, संस्कार, चमत्कार—इत्यादि से मुझे कोई मोह नहीं है।

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मैं शरीर में रहकर भी शरीर-मुक्त, और समाज में रहकर भी समाज-मुक्त हूँ।

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जानने की कोशिश मत करो। कोशिश करोगे तो पागल हो जाओगे।

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परिश्रम और प्रतिभा आप-ही-आप आदमी को अकेला बना देती है।

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