Font by Mehr Nastaliq Web
G. Shankar Kurup's Photo'

जी. शंकर कुरुप

1901 - 1978 | एर्नाकुलम, केरला

समादृत मलयाली कवि, निबंधकार और समालोचक। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित पहले साहित्यकार।

समादृत मलयाली कवि, निबंधकार और समालोचक। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित पहले साहित्यकार।

जी. शंकर कुरुप की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 17

उद्धरण 5

मेरा जीवन मरुभूमि बन गया है।

  • शेयर

वही मनुष्य धन्य है जो स्वधर्म में रत है।

  • शेयर

यह शरीर केवल एक दीपक है—प्राणों के प्रज्वलित होने के लिए। मिट्टी के इस दीप के प्रति इस प्रकार मुग्ध हो जाना क्या उचित हुआ? लावण्य तो मात्र इंद्रजाल है उस दोप का। हाय, साहसी अनुराग ने आपकी बुद्धि की आँखें मूँद दीं।

  • शेयर

हे मानव! जब से मैंने तुम्हारी भाषा सीखी, तब से वह विश्व-विमोहक भाषा भूल गया जिसमें स्नेह छोड़कर कोई शास्त्र नहीं, आनंद को छोड़कर कोई अर्थ नहीं, रूप को छोड़कर कोई छंद नहीं।

  • शेयर

मैं भी जानती हूँ प्रेम का मूल्य, किंतु जब उसकी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य भाव से तुलना करती हूँ प्रेम-एक तुषार की कणिका-सा बन जाता है और मातृभूमि के प्रति कर्तव्य भाव अमूल्य रत्न-सी दिखाई पड़ता है।

  • शेयर

"एर्नाकुलम" से संबंधित अन्य कवि

 

Recitation