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दरबार ताजपोशी

darbar tajaposhi

मुंशी शिवनारायण सक्सेना

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और अधिकमुंशी शिवनारायण सक्सेना

    रोचक तथ्य

    पाठक तत्कालीन भाषा का स्वरूप देख सके, इसलिए यह यात्रा वृतांत्त अपने मूल रूप में प्रस्तुत है।

    ता. 8 अगस्त। यह मुबारक रस्मे ताजपोशी वैस्टमिस्टर एवी में अदा हुई थी। श्री हुज़ू साहिब उस रोज़ 6 बजे से पहिले उठकर ज़रूरी बातों से फ़ुरसत पा गए थे और फिर स्टार आफ़ इंडिया का चुग़ा जी. सी. आई. का स्टार अपने जामे पर लगाकर ताजपोशी में जाने के लिए तैयार हुए। खूँटेदार पाग, बहुत शोभायमान मालूम देती थी। मोरेलाज से ठीक आठ बज कर बीस मिनट पर रवाने हो गए थे। इंडिया आफ़िस से उस रोज़ पाँच पास आए थे। दूसरे तीस साथ वालों को जुलूस ताजपोशी देखने के लिए न्यू स्काटलेंड यार्ड भिजवा दिए गए थे। ताजपोशी का समय बारह बजे दिन का नियत हो चुका था मगर सात बजे सुबह दरवाज़ा खुलने के साथ ही एवी में दरबारियों, महमानों, रईसों और अमीरों का प्रवेश प्रारंभ हो गया था। गैलेरी की बैठक का ढंग ठीक वैसा ही समझना चाहिए जैसा कि अकसर नाटक घरों में हुआ करता है। यानी हर तरफ़ कुर्सियाँ इस तरक़ीब से बिछवाई गई थी कि पहली कुर्सी पर बैठने वालों और अख़िरी नंबर की कुर्सी पर बैठने वालों तमाम ही को कैफ़ियत बराबर दीख सके। तमाम आली क़दर लार्ड, अर्ल, डयूक, मारकिस और बैरन इत्यादि अपनी पूरी दरबारी पोशाकें पहनकर शामिल हुए थे। सामने के दालान की शुरू में अमीरों और वज़ीरों की पत्नियों को जगह दी गई थीं जो निहायत सज धज के साथ बनठन कर अपने-अपने मस्तकों पर किलंगियाँ रखे हुए चमकदार और ख़ुश वज़ा लिबासों से सुशोभित होकर लंबे-लंबे गाउनों से बहारी का नक़्शा खेंचती हुई एक अजीब दिल फ़रेब लिबास के साथ दरम्यानी हाल में होकर अपनी-अपनी बैठकों पर पहुँचती जाती थीं। इस बैठक के इंतज़ाम के अलावा क़रीब 6 हज़ार मोअज़िज़, और शरीफ़ आदमी पूर्व के दरवाज़ों के कोनों में बैठे हुए थे जिन को रस्म ताजपोशी तो दीख नहीं सकती थी लेकिन वह सब शानदार सवारियों के नज़ारे और ख़ुशी के शब्दों की गूँजें और बाजों की सुरीली आवाज़ें सुन-सुन कर ख़ुश हो रहे थे। बीच के बड़े कमरे में आला दर्जे के नीले रंग के क़ालीनों का बड़ा फ़र्श हो रहा था जिस के बीचोंबीच बेदी बनी हुई थी और जिससे ताजपोशी की रस्मों का संबंध था। इस ख़ास मुक़ाम के आस-पास बादशाही ख़ानदानी और दूर देश मुल्कों के शाहज़ादे और वाज़ वाज़ सलतनतों के बड़े-बड़े हाकिमों के लिए जगह मुक़र्रर की गई थी और एक तरफ़ को दुआ और प्रार्थना में साथ देने के ख़याल से बैठे हुए थे। दरबार में शरीक होने वाले साहिबों की चमकदार पोशाकों और अजीब-ओ-ग़रीब फ़ैशनों का बयान शब्दों में नहीं हो सकता। प्रत्येक मनुष्य बढ़िया से बढ़िया पोशाक पहने हुए अपनी सुंदरता और महत्व को प्रगट कर रहा था। गिरजाघर के सामने बाहर के मैदान में बादशाही फ़ौज ठाटबाट के साथ खड़ी हुई बहुत ही मनोहर मालूम होती थी। तमाशा देखने वालों का हजूम इतना ज़्यादह हो रहा था कि जिस की गिनती नहीं। ऐवी के चौक में हज़ारों घोड़े गाड़ी और अनगिनित मोटर गाड़ियाँ खड़ी नज़र आती थीं। इतना हजूम होने पर भी कोई दुर्घटना नहीं हुई जो पुलिस के सुप्रबंध का प्रत्यक्ष प्रमाण था। तमाशाइयों का इंतिज़ाम करने के अलावा हुज़ूर प्रिन्स आफ़ वेल्स बहादुर ने मालबरों हाऊस के बाग़ में मेहरबानी के साथ एक हज़ार से ज़्यादा अनाथ बच्चों और ग़रीबों को अपना महमान बना लिया था कि ऐसे ग़रीब ग़ुरबा जिनका ज़ाहिर में कोई ज़रया जलूल देखने का नहीं था ख़ुद बादशाह के महमान बनकर आराम के साथ जलूस की सैर देख सकें। पालमाल बाज़ार सेन्टजेम्स स्ट्रीट और पिकेडली के रास्तों में प्रजागण की बहुत भीड़ लगी हुई थी क्योंकि यह बात नियत हो चुकी थी के ताजपोशी के बाद हुज़ूर बादशाह सलामत की जलूसी सवारी इन ही रास्तों में होकर जावेगी। शहर लंडन के बाज़ार दुकान और मकानात तमाम ऊपर तले आदमियों से भरे हुए नज़र आते थे। बहुत सबेरे से ही लोगों ने दोनों तरफ़ की जगह रोक ली थी। बूढ़े मर्द और औरतें रात के दो बजे से ही उठ-उठ कर कैम्प स्टूल और खाने पीने का सामान लेकर जा पहुँचे थे। आस आदमियों का दिल बहलाने के लिए ख़ास-ख़ास स्थानों पर सुंदर बाजे बज रहे थे। गार्ड्स बैन्ड का मशहूर बाजा वेस्टमिनिस्टर ऐवी के पास ही अपनी जादूभरी ताने सुना रहा था। दूसरे स्थान के बाजे वालों ने भी तमाशा देखने वालों को ख़ुश करने और अपना कमाल दिखाने में इतनी कोशिश की थी कि किसी को भी ख़ाली बैठकर इंतज़ार करना बुरा मालुम नहीं हुआ। दरबारियों की सवारियाँ साढ़े आठ बजे सुबह से बड़े ठाट बाट के साथ ऐवी की तरफ़ जानी शुरू हो गई थीं। मगर बादशाह के ख़ानदान वालों की सवारियाँ महल वकिंगघाम से साढ़े दस बजे रवाना हुई। शाहज़ादे वली अहद पौने ग्यारा बजे दिन के अपने स्टाफ़ को साथ लेकर हाऊस ऑफ़ यार्क से रवाना हुए। इन की अर्दली में रायल हार्स गार्ड के फ़ौजी दस्ते आगे पीछे बादशाही रौब और जलाल बरसाते जाते थे। ठीक ग्यारा बजे हजूर सम्राट ऐडवर्ड सप्तम को शाही गाड़ी महल वकिंगघाम से निकलती हुई दिखलाई दी! जनाब मल्का मौअज़मा अलेगज़ैन्डरा साहिबा भी पूरी शान शौकत ठाटबाट के साथ शाहाना लिबास पहने हुए उसी गाड़ी में सवार थीं। जिस वक़्त बादशाही गाड़ी के घोड़ों का पहला क़दम बकिंगघाम के महल से बाहर निकला उसी वक़्त शाही तोपख़ाने से सलामी की तोपें चलनी शुरू हुई, और संपूर्ण दर्शनाभिलाषी तोपों की आवाज़ों के साथ ही बादशाह सलामत के दर्शनों के लिए खड़े हो गए। हुजूर सम्राट् भी निहायत हर्ष के साथ मुस्कुराते हुए अपनी प्रजागण का सलाम लेते हुए आहिस्ता आहिस्ता ग्यारह बजकर पच्चीस मिन्ट पर ऐवी में दाख़िल हुए। हज़ूर मलिका मोअज़्ज़मा ने उस रोज़ जो पोशाक धारण कर रखी थी उस पर हिंदुस्तान वालों की कारीगरी ख़त्म की गई थी। चकाचौंध के कारण निगाह उस पर ठहर नहीं सकती थी। इस पर लंबा गाऊन कुछ और ही समा दिखला रहा था। उस के दामन को पाँच मौअज़्ज़ज़ लेडियाँ उठाए चल रही थीं। ग़रज़ यह है के इस दराज़ दासनी ने दाख़िले के दरवाज़े से लेकर वेदी के क़रीब तक अजब जगमगाहट और झलमलाहट का दरया बहा रखा था। एवी में इनके दाख़िल होने के बाद स्कूल के लड़कों ले निहायत जोश के साथ यह गीत गाया! “ख़ुदा मलिका अलेगज़ेन्डरा को सदा सर्वदा ख़ुश रखे”। मलिका के बाद हुज़ूरपुरनूर सम्राट का दाख़िला हुआ जो बादशाही पोशाक धारण किए हुए थे, और एक बहुत लंबा क़ीमती लिबादा ज़ेब तन फ़रमा रखा था जिसको बहुत से मौअज़्ज़िज़ सरदार उठाए हुए थे। हुजूर सम्राट के पधारने पर चारों तरफ़ से चीअर्ज़ दिए जाने लगे। साथ ही लड़कों ने भी जैसा कि दस्तूर है यह गीत गाया। “ख़ुदा ऐडवर्ड सप्तम को हमेशा ज़िंदा और ख़ुश रक्खे” इस के बाद तमाम दरबारी अपनी-अपनी जगहों पर जा बैठे। सिर्फ़ लार्ड सैलिस्वरी साहिब जो इंगलिस्तान के प्राचीन वज़ीर थे और डयूक आफ़ डैवन साहिब लंबे-लंबे चुग़े ओढे हुए इधर-उधर गश्त लगाते दिखलाई देते थे क्योंकि ताजपोशी का तमाम इंतिज़ाम इन्हीं के सुपर्द था। ठीक ग्यारह बजकर 55 मिन्ट पर बादशाह सलामत ताजपोशी के छोटे कमरे ले बरामद होकर हाल में दाख़िल हुए, और पच्छिम के दरवाज़े से उनके दाख़िल होने पर यह मज़हबी गीत गाया जाना शुरू हो गया। “ख़ुदा के घर में आने का इरादा क्या ही अच्छा है।” इस के बाद आर्क विशाप आफ़ कंटरवरी ने बादशाह सलामत को नज़्ज़ारेगाह में यह कहते हुए पेश किया “साहिवान! मैं आपके सामने बादशाह एडवर्ड सप्तम को जो इस सलतनत का बेशक-ओ-बेशुभा बादशाह हैं पेश करता हूँ। क्या आप लोग जो इस मुबारक दिन की ताज़ीम तकरीम के लिए जमा हुए हैं उनकी यानी बादशाह सलामत की अताअत के लिए तैयार हैं इस पर दरबारियों ने फ़ौरन ख़ुश होकर ज़ोर से यह कहा, “ख़ुदा इस बादशाह को हम पर हमेशा सलामत रक्खे। फिर बादशाह सलामत ने लाल टोपी मस्तक पर धारण की। गाजे बाजों में बराबर दुआ के गीत गाए जाते रहे। फिर सम्राट ने अंजील हाथ में लेकर सौगंध खाई कि “मैं रिआया पर पारलीमेन्ट के मंजूर किए हुए कानून और उसके दूसरे नियमों के अनुसार यहाँ राज करूँगा।” फिर प्राचीन रीती के अनुसार जैतून का तेल मले जाने के बाद बादशाही पोशाक धारण की। शाही महमेज़ बूट में लगाने, शाही तलवार कमर में बाँधने, और शाही अँगूठी हाथ में पहनने के बाद हुकूमत का असा (डंडा) हाथ में दिया गया। हर एक रसम अलग-अलग होती रही, और उसके साथ उसकी नमाज़ भी अदा होती रही आर्क बिशोप आफ़ कैन्टरबरी ने फिर सब से पहले आशीर्वाद देकर सेन्ट एडवर्ड का ताज बादशाह के सिर पर रख दिया। फिर वह ताज पहनाया गया जो ख़ास उसी दिन के लिए बनवाया गया था। इस के पीछे चारों तरफ़ से यह ख़ुशी की आवाज़ गूँज उठी “ख़ुदा हमारे बादशाह को सलामत रखे।” बादशाह की ताजपोशी हो जाने के बाद आर्क बिशाप आफ़ यार्क ने मलका मौअज़मा अलकज़ेंडरा को ताज पहनाया। फिर हुज़ूर प्रिन्स आफ़ वेल्स ने सब से पहले अपने बाप के क़दमों को बोसा दिया जो ख़ानदान की तरफ़ से इताअत की दलील थी। फिर आर्क बिशाप आफ़ केन्टरबरी ने मज़हबी गिरोह की तरफ़ से इसी तौर पर इताअत का इज़हार किया। इन रस्मों के ख़त्म होने के बाद शाही सलामी की तोपें चलनी शुरू हुई, और बादशाह और मलका मोअज़्ज़मा एक बज कर 50 मिन्ट पर एबी से रवाना हुए। रास्ते में प्रजा की बहुत भीड़भाड़ हो रही थी और जहाँ तक निगाह जाती थी दोनों तरफ़ प्रजागण अपने हुज़ूर सम्राट् को आशीर्वाद देते दिखलाई देते थे। बादशाह मलका भी बहुत प्रसन्न नज़र आते थे और सलाम करने वालों को सिर झुका-झुका कर सलाम का जवाब देते जाते थे। सवारी महल बकिंगधाम में दाख़िल हो गई मगर प्रजागण का इतना प्रेम था के बाज़ारों से हटकर बादशाही महल के दरवाज़े पर जा खड़े हुए। रिआया को ख़ुश रखना ज़रूरी समझ कर बादशाह सलामत और मलका मौअज़मा शाम को पाँच बजे सहन में जाकर खड़े हो गए। और वहाँ प्रजागण का सलाम लिया। उस रोज़ शहर में चारों ओर हर्ष आनंद छा रहा था। ताजपोशी ख़त्म होने के बाद शाही चहरे के टिकट और नया सिक्का जारी हो गया। इसलिए उनकी ख़रीदारी उस रोज़ डाकख़ानों में इतनी ज़्यादा हुई के जिस की हद नहीं। उसी रात को तमाम लंडन में रौशनी की सैर देखने के लायक़ थी। तमाम शहर जगमगा रहा था। सरकारी महल और मकानों पर सरकार की तरफ़ से रौशनी की गई थी। व्यापारियों और दुकान दारों ने अपनी दुकानों पर रौशनी का ख़ूब इंतिज़ाम किया था। रौशनी तमाम बिजली की थी। शौक़ीनों के ठट के ठट बाज़ारों में फिरते नज़र आते थे, मगर वाह रे तहज़ीब! लुत्फ़ यह था के बावजूद इतने भीड़ भाड़ के भी गुल गपाड़ा नाम को था। बादशाह की गाड़ी वापिस चले जाने के बाद क़रीब साढ़े तीन बजे हुज़ूर साहिब वापिस पधारे। आप उस रोज़ बिलकुल थक गए थे। मगर सबसे ज़्यादा ख़ुशी इस बात की थी कि ताजपोशी की रसम कि जिस की बहुत दिनों से चाह थी कुशलपूर्वक पूरी हुई।

    ता. 10 अगस्त। उस रोज़ महाराजा साहिब किसी जगह बाहर तशरीफ़ नहीं ले गए। पौने पाँच बजे लार्ड लारैनस साहिब मये अपने लड़के के दरबार से मिलने को ताशरीफ़ लाए।

    ता. 11 अगस्त। सर आरनैसट कैसिल साहब मुक़ाम स्वईज़रलैंड पधारने वाले थे। इस कारण वहाँ जाने से पहले उस रोज़ क़रीब तीन बजे तशरीफ़ लाए, और बतौर यादगार दोस्ताना एक अपनी अक्सी तस्वीर दरबार को दे गए।

    ता. 12 अगस्त। साढ़े ग्यारा बजे महाराजा साहिब तैयार होकर यारक् हाऊस को हुज़ूर शाहजादे प्रिन्स आफ़ वेल्स से मिलने के लिए पधारे। रास्ते में इंडिया ऑफ़िस से करज़न वायली साहिब को अपने हमराह ले लिया! क़रीब साढ़े बारह बजे यारक् हाऊस पहुँचे। शाहजादा साहिब ने निहायत अख़लाक़ के साथ स्वागत किया, और अपने साथ काऊच पर बिठाकर बहुत देर तक बातें फ़रमाते रहे। करज़न वायली साहिब दूसरी कुर्सी पर बैठे हुए तर्जुमानी का काम कर रहे थे। श्री दरबार एक बजे वहाँ से वापिस पधारे, और फिर बहुत जल्दी से जीमण करके तीन बजे बादशाह सलामत से मिलने गए। कुछ देर इंतिज़ार करना पड़ा। फिर बादशाह सलामत दूसरे कमरे में तशरीफ़ लाए और महाराजा साहिब को वहाँ बुला लिया। बादशाह सलामत ने बहुत ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए जयपुर की तारीफ़ की और ख़ासकर शेर की शिकार का ज़िक्र किया। फिर दरबार ने एक जड़ाऊ तलवार जो पहले से वहाँ भिजवा दी गई थी श्रीलाल सम्राट की सेवा में भेंट की। उसकी क़ीमत क़रीब दस हज़ार पाउंड के थी। उस की बाड़ मुल्क दमिश्क़ के फ़ौलाद की बनी हुई थी और उस में बड़े-बड़े हीरे क़रीब एक-एक इंच के जड़ रहे थे। बादशाह सलामत उस की चमक दसक देख कर अत्यंत प्रसन्न हुए और फ़रमाया कि मैं इसको कल फ़ौज हिंदुस्तान की पैरेड में इस्तेमाल करूँगा। मलका मोअज़्ज़मा कुईन अलेकज़ेन्डरा साहिबा ने भी उसी वक़्त फ़रमाया के दरबार ने जो प्याले रकाबी मुझको दी है मैं उनको हर रोज़ काफ़ी पीने के वक़्त इस्तेमाल करती हूँ। दरबार ने हुज़ूर सम्राट से उन की तस्वीरें माँगी जो उन्होंने निहायत ख़ुशी से उसी वक़्त इनायत फ़रमाई। फिर दरबार वहाँ से रुख़सत हो कर वापिस तशरीफ़ लाए। उसी रात को हुज़ूर सम्राट् की तरफ़ से आठ तमग़े पुजारी श्री ठाकुरजी, करनैल जैकव साहिब, ठाकुर साहिब चौमूं, राव राजाजी सीकर, राजा उदय सिंह जी बाबू संसार चंद्र जी, धनपतराय जी और ठाकुर हरि सिंह जी के वास्ते आए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जयपुर नरेश की इंग्लैंड यात्रा (पृष्ठ 88)
    • प्रकाशन : जेलप्रेस, जयपुर

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