मामूली तरह से सजा हुआ एक कमरा। अंदर के दरवाज़े से आते हुए जिन महाशय की पीठ नज़र आ रही है वे अधेड़ उम्र के मालूम होते हैं, एक तख़्त को पकड़े हुए पीछे की ओर चलते-चलते कमरे में आते हैं। तख़्त का दूसरा सिरा उनके नौकर ने पकड़ रखा है। बाबू : अबे धीरे-धीरे
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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