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ग्रीष्मागमन
उत्साहित कर दावानल को दिनकर प्रखर करों द्वारा,जीव-जंतुओं से परिपूरित विपिन जलाते हैं सारा।
मैथिलीशरण गुप्त
वर्षा
कुसुमित भए लता पल्लव बहु विपिन उठे अति फूल।उमड़ि नदी इतराई डोलत भूल रही दोउ कूल।
बालमुकुंद गुप्त
हर रात की सुबह होती है
नीर से बाहर निकल कर मछलियों ने पंख पायाविपिन का संसार त्याग सरीसृपों ने सिर 'उठाया'