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नश्वरता

nashwarta

सुशीला सामद

सुशीला सामद

नश्वरता

सुशीला सामद

और अधिकसुशीला सामद

    मेरे क्षण-भंगुर जीवन में,

    सरिता में शुभ्र लहर-सी।

    आती है बस यौवन-लहरी,

    जीवन में एक क़हर-सी॥

    कितने तरणी-तीरों से वह,

    खा कर कठोरतर टक्कर।

    क्षण में बनती है काठों से,

    घुलमिल कर वह तो शक्कर॥

    कितने कष्टों की निधि को हे—

    नाविक! अनजाने भोले—

    क्षण भर के भ्रम में है भूला,

    तूने तरंग में खोया॥

    क्षणिक ज्योति की आभा में,

    भूलों-भटको मत प्यारे।

    कितने शलभ बिचारे भ्रम में,

    जल कर के स्वर्ग सिधारे॥

    उनकी मधु माखी पाँखों को,

    क्षण भर में कर के ख़ाली।

    बुझ यों ही जाएगा दीपक,

    स्नेह-रहित हो कर आली॥

    सौरभ-विहीन तब होकर फिर,

    यह गुलाब की भी डाली।

    मिल कर धूल-कणों में सत्वर,

    पावेगी छटा निराली॥

    निज सौरभ समीर को देकर,

    मुरझा के धीरे-धीरे।

    नाहक बन कर दीवाने तुम,

    फिरते क्यों सीरे-सीरे॥

    कोकिल के कल-कंठों में की,

    वाणी की जो मृदु झंकार।

    मेरे हित विपरीत वही है!

    मानो होवे धनु-टंकार॥

    तेरे इस रमणीक विपिन में,

    आकर मधु वसंत का वायु।

    नहीं भरेगा सुषमा प्यारा,

    हर लेगा उलटा वह आयु॥

    जीवन-वन में अब वसंत भी,

    नहीं करेगा निज फेरा।

    इस मेरे प्यारे कानन को,

    हा! निदाघ ने घेरा॥

    इसमें आकर तू नाहक़ ही,

    ताप-तप्त हो जाएगा।

    इधर पाँव मत धरना अपना,

    भस्मसात हो जाएगा॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रलाप (पृष्ठ 59)
    • संपादक : वंदना टेटे
    • रचनाकार : सुशीला सामद
    • प्रकाशन : प्यारा केरकेट्टा फ़ाउंडेशन
    • संस्करण : 2017

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