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शब्द हमारा तू शब्द का
शब्द हमारा तू शब्द का, सुनि मति जाहु सरक।जो चाहो निज तत्त्व को, तो शब्दहि लेह परख॥
कबीर
का ब्राह्मन का डोम भर
का ब्राह्मन का डोम भर, का जैनी क्रिस्तान।सत्य बात पर जो रहै, सोई जगत महान॥
सुधाकर द्विवेदी
सतगुरु मिल्यो तो का भयो
सतगुरु मिल्यो तो का भयो, घट नहिं प्रेम प्रतीत।अंतर कोर न भींजई, ज्यों पत्थल जल भीत॥
संत केशवदास
इस जीने का गर्व क्या
इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।बात कहते ढह जात है, बारू की सी भीत॥
मलूकदास
कबीर यहु घर प्रेम का
कबीर यहु घर प्रेम का, ख़ाला का घर नाँहि।सीस उतारै हाथि करि, सो पैठे घर माँहि॥
कबीर
तू गृह श्री ही धी रतन
तू गृह श्री ही धी रतन, तू तिय सकति महान।तू अबला सबला वनै, धरि उर सति विधान॥
रत्नावली
पीपा दोइ न चहिये भगत के
पीपा दोइ न चहिये भगत के, इक ऊँट र सालिगराम।वहु तौ तौडै पीपलाँ, वह तुलसी का पान॥