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सुन्दर सद्गुरु ब्रह्ममय
सुन्दर सद्गुरु ब्रह्ममय, परि शिष कीचम दृष्टि।सुधी वोर न देखई, देखै दर्पन पुष्टि॥
सुंदरदास
सुन्दर देह परी रही
सुन्दर देह परी रही, निकसि गयौ जब प्रान।सब कोऊ यौं कहत हैं, अब लै जाहु मसान॥
सुंदरदास
राजा सोयौ सेज परि
राजा सोयौ सेज परि, भयौ स्वप्न मंहिं रंक।सुन्दर भूलौ आपकौं, आतम देह लगाई पंक॥
सुंदरदास
सुन्दर अजिगर परि रहै
सुन्दर अजिगर परि रहै, उद्धम करै न कोइ।ताकौं प्रभुजी देत है, तूं क्यौं आतुर होइ॥
सुंदरदास
वेई गड़ि गाड़ैं परी
वेई गड़ि गाड़ैं परी, उपट्यौ हारु हियैं न।आन्यौ मोरि मतंगु मनु, मारि गुरेरनु मैन॥
बिहारी
सुन्दर शिष जिज्ञास है
सुन्दर शिष जिज्ञास है, परि जो बुद्धि न होइ।तौ सद्गुरु क्यौं पचिमरौ, शब्द ग्रहै नहिं कोइ॥
सुंदरदास
वृंदाबन में परि रहौ
वृंदाबन में परि रहौ, देखि बिहारी-रूप।तासु बराबर को करैं, सब भूपन कौ भूप॥
ललितमोहिनी देव
नैंन-आतसी काँच परि
नैंन-आतसी काँच परि छबि-रबि-कर अवदात।झुलसायौ उर-कागदहिं, उड़्यौ साँस-सँग जात॥
दुलारेलाल भार्गव
खल रिपु बस परि जे रखहिं
खल रिपु बस परि जे रखहिं, सतिपन पूरी।पतिवरता तिन तियनु की, रतनावलि पग धूरी॥
रत्नावली
दृगन लगन मन मग न परि
दृगन लगन मन मग न परि, मगन गगन लों लागि।भगन भगनफल, जगन सहि, हरि सो सो बड़ भागि॥
दयाराम
परता में तुम परि गये
परता में तुम परि गये, नहिं निजता कौ लेस।निज न पराये होय क्यों, बसौ जाय परदेस॥
वियोगी हरि
दंपति-हित-डोरी खरी परी
दंपति-हित-डोरी खरी, परी चपल चित-डार।चार चखन-पटरी अरी, झोंकनि झूलत मार॥
दुलारेलाल भार्गव
जग-नद में तेरी परी
जग-नद में तेरी परी, देह-नाव मँझधार।मन-मलाह जो बस करै, निहचै उतरै पार॥
दुलारेलाल भार्गव
सिंह कूप परि आइ कैं
सिंह कूप परि आइ कैं, देखी अपनी छांहिं।सुन्दर जान्यौ दूसरौ, बूड़ि मुवौ ता मांहिं॥