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भोली मुन्धि मा गब्बु करि
भोली मुन्धि मा गब्बु करि, पिक्खिवि पडरूवाइँ।चउदह-सइ छहुत्तरइँ, मुंजह गयह गयाइँ॥
मुंज
मन हस्ती मा चढ़त है
मन हस्ती मा चढ़त है, करमन टट्टू होय।नरक परै की विधि करै, मुकुति कहाँ ते होय॥
मीतादास
मरगय वन्नह पियह उरि
मरगय वन्नह पियह उरि पिय चंपय-पह देह।कसबट्टइ दिन्निय सहइ नाइ सुवन्नह रेह॥
सोमप्रभ सूरि
आगि जो लागि समुद्र में
आगि जो लागि समुद्र में, धुवाँ न परगट होय।की जाने जो जरि मुवा, की जाकी लाई होय॥
कबीर
रूवि पयंगा सद्दि मय
रूवि पयंगा सद्दि मय, गय फांसहि णासंति।अलि-उल गंधहि मच्छ रसि, किमि अणुराउ करंति॥
जोइंदु
निज प्रतिबिंबन में दुरी
निज प्रतिबिंबन में दुरी, मुकुर धाम सुखदानि।लई तुरत ही भावते, तन सुवास पहिचान॥
बैरीसाल
मैं ना सखी निहारिहौं
मैं ना सखी निहारिहौं, इन नैनन ब्रज-चंद।मम हिय अति डरपत सदा, फँसि जैहौं छलछंद॥
मोहन
मो उर में निज प्रेम अस
मो उर में निज प्रेम अस, परिदृढ़ अचलित देहू।जैसे लोटन-दीप सों, सरक न ढुरक सनेहु॥
दयाराम
मृगी ज्यों सब ठगी नागरि
मृगी ज्यों सब ठगी नागरि, रहि विरह तन घेरि।मिलन चाहति लाल अंक, निसंक हारी हेरि॥
रसिक अली
माई एहड़ा पूत जण
माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राण प्रताप।अकबर सूतो ओझकै, जाण सिराणै साँप॥
पृथ्वीराज राठौड़
मो मन मेरी बुद्धि लै
मो मन मेरी बुद्धि लै, करि हर कौं अनुकूल।लै त्रिलोक की साहिबी, दै धतूर कौ फूल॥
मतिराम
मो मन को तुम मम प्रिये
मो मन को तुम मन प्रिये, मो तन तुम तन चाहि।निरास कीजें ताहि कों, प्रीतम जो प्रिय नाहिं॥
दयाराम
जइ ससणेही तो मुइअ
जइ ससणेही तो मुइअ अह जीवइ निन्नेह।विहिं वि पयारेंहिं गइअ धण किं गज्जहिं खल मेह॥
हेमचंद्र
मुए जिआए भालु कपि
मुए जिआए भालु कपि, अवध बिप्र को पूत।सुमिरहु तुलसी ताहि तू, जाको मारुति दूत॥
तुलसीदास
मो सम दीन न दीन हित
मो सम दीन न दीन हित, तुम्ह समान रघुबीर।अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु बिषम भव भीर॥