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दामिनि चमकै चहुं दिसा
दामिनि चमकै चहुं दिसा, बून्द लगत है बांन।सुन्दर ब्याकुल बिरहनी, रहै क निकसै प्रांन॥
सुंदरदास
साव-सलोणी गोरडी नवखी
साव-सलोणी गोरडी नवखी क वि विस-गंठि।भडु पच्चलिओ सो मरइ जासु न लग्गइ कंठि॥
हेमचंद्र
भौं जमाल कहुं जान मोहि
भौं जमाल कहुं जान मोहि, कहूँ काह मैं तोहि।निस बासर बृज चंद जू, छोड़त नहिं क मोहि॥
जमाल
सिर तैं द्वै अध सिर करै
सिर तैं द्वै अध सिर करै, सिर-सिर चहुं-चहुं पाँव।ऐसैं सिर चालीस है, मन कहिये क छलाव॥
सुंदरदास
देवादास कह सुरत सों
देवादास कह सुरत सों, वै मूरख बड़ा अग्यान।पगथ्या पाड़या हाथ सूँ, करै महल को ध्यान॥
देवादास
मो सम दीन न दीन हित
मो सम दीन न दीन हित, तुम्ह समान रघुबीर।अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु बिषम भव भीर॥
तुलसीदास
घरू-घरू डोलत दीन ह्वै
घरू-घरू डोलत दीन ह्वै, जनु-जनु जाचतु जाइ।दियै लोभ-चसमा चखनु, लघु पुनि बड़ौ लखाई॥
बिहारी
देह खेह बद्ध कर्म महँ
देह खेह बद्ध कर्म महँ, पर यह मानस नेम।कर जोड़े सन्मुख सदा, सादर खड़ा सप्रेम॥
भक्त रूपकला
दीन गरीबी गहि रह्या
दीन गरीबी गहि रह्या, गरुवा गुर गंभीर।सूषिम सीतल सुरति मति, सहज दया गुर धीर॥
दादू दयाल
जो तिय मन वच काय सों
जो तिय मन वच काय सों, पिय सेवति हुलसति।तेहि चरनन की धूरि धरि, रतनावलि बलि जाय॥
रत्नावली
कह मलूक हम जबहिं ते
कह मलूक हम जबहिं ते, लीन्हों हरि को ओट।सोवत है सुख नींद भरि, हरि भरम की पोट॥
मलूकदास
कित दुलावें हम किय कहा
कित दुलावें हम किय कहा, जो तो लगी अनीति।यातें दूनो याहि ढब करि, तुं हमें ठरि जीति॥
दयाराम
एक्कु कइअह वि न आवही
एक्कु कइअह वि न आवही अन्नु वहिल्लउ जाहि।मइँ मित्तडा प्रमाणिअउ पइँ जेहउ खलु नाहिं॥