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ब्रजी लोकगीत : मत मारौ दृगन की चोट
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ब्रजी लोकगीत : आज बिरज में होरी रे रसिया
हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ
हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ।साराँ देखे लाज मराँ छाँ आवाँ किण जतनाँ॥
रसिकबिहारी
चोट के निशानों
लियोनार्ड कोहेन
ब्रजी लोकगीत : आज बिरज में होरी, रे रसिया
आज बिरज में होरी, रे रसिया।उड़त गुलाल लाल भए बादर, केसर रंग में बोरी, रे रसिया।
हमें अपना रास्ता अपने
हमें अपना रास्ता अपने जीवन की कुदाली की एक-एक चोट से रात-दिन बनाना पड़ेगा और उसी पर चलना भी पड़ेगा।