Font by Mehr Nastaliq Web

कल काननि कुंडल मोरपखा

kal kanani kunDal morapkha

रसखान

अन्य

अन्य

रसखान

कल काननि कुंडल मोरपखा

रसखान

और अधिकरसखान

    कल काननि कुंडल मोर-पखा उर पै बनमाल बिराजति है।

    मुरली कर में अधरा मुसकानि-तरंग महा छवि छाजति है॥

    रसखानि लखे तन पीत पटा सत दामिनि-सी दुति लाजति है।

    वहि बाँसुरी की धुनि कान परे कुलकानि हियो तजि भाजति है॥

    कोई गोपी अपनी सखी से कृष्ण की शोभा तथा उनकी बाँसुरी के प्रभाव का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि। कृष्ण के कानों में सुंदर कुंडल, सिर पर मोर-पंखों का मुकट और हृदय पर वैजयंती माला सुशोभित है। उनके हाथ में वंशी और होंठोंं पर मुस्कान की लहरें अत्यंत शोभा प्राप्त कर रही है। रसखान कवि कहते हैं कि उनके तन पर सुशोभित पीले वस्त्र को देखकर सैंकड़ों बिजलियों की शोभा लज्जित होती है। उसी बाँसुरी की ध्वनि कानों में पड़ने पर ब्रज-वनिताएँ अपने हृदय से वंश की मर्यादा छोड़ कर उसी ओर भागती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रसखान ग्रंथावली सटीक (पृष्ठ 229)
    • रचनाकार : प्रो. देशराजसिंह भाटी
    • प्रकाशन : अशोक प्रकाशन
    • संस्करण : 1966

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY