साधौ भाई कै जनम्या कै मर्या

sadhau bhai kai janamya kai marya

सैन भगत

सैन भगत

साधौ भाई कै जनम्या कै मर्या

सैन भगत

और अधिकसैन भगत

    साधौ भाई कै जनम्या कै मर्या।

    राम नाम रटयो नहीं रसना, बिरथा सबद उचर्या।

    मीठा सबद कह्या नहीं जिव्हा, जे कह्या विस भर्या॥

    परहित कारण जनम लियो हे, निज सुवारथ सँभर्या।

    जनम अकारथ बीत चल्यो रे, नी चेतयो संकर्या॥

    दान दियो नहीं पाई-धेला, पर धन रुच-रुच हर्या।

    जतरो धन भर लियो कोथरी, छल करतां संघर्या॥

    अंत समै भवसागर फँसयो, ना डूबा ना तर्या।

    सैन भगत जद डूबण लागो, सतगुरू नाम सिमर्या॥

    साधु भाई! क्या तो जन्म लिया और क्या मर गए? जिह्वा से कभी राम का नाम नहीं लिया, व्यर्थ के शब्द ही बकते रहे। जो भी कहा, विषबुझा ही कहा। यह जन्म परोपकार के लिए हुआ है, किंतु सदा स्वार्थ साधने में लगे रहे। अरे शंकरा! तेरा जन्म व्यर्थ ही बीत गया है। अरे! तूने कभी पाई-धेला तक दान में नहीं दिया। दूसरे के धन को हरण करने में ही लगा रहा। जितना भी धन संग्रह करके अपनी कोथरी में भरा है, सब छल द्वारा संग्रहित है। अंत समय में भवसागर में फँस गया। डूब सका, तिर सका। सैन कहते हैं—जब डूबने लगा, तब सद्गुरू का स्मरण किया। तब जाकर उद्धार हो सका।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 302)
    • संपादक : अशोेक मिश्र
    • रचनाकार : संत सैन भगत
    • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
    • संस्करण : 2013

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