फलगुण अनंद उपारजना

phalgun anand uparajna

गुरु अर्जुनदेव

गुरु अर्जुनदेव

फलगुण अनंद उपारजना

गुरु अर्जुनदेव

और अधिकगुरु अर्जुनदेव

    फलगुण अनंद उपारजना हर सजण प्रगटे आए।

    संत सहाई राम के कर किरपा दीआ मिलाए॥

    सेज सुहावी सरब सुख हुण दुखा नाही जाए।

    इछ पुनी वडभागणी वर पाइआ हर राए॥

    मिल सहीआ मंगल गावही गीत गोविंद अलाए।

    हर जेहा अवर दिसई कोई दूजा लवै लाए॥

    हलत पलत सवारिओन निहचल दितीअन जाए।

    संसार सागर ते रखिअन बहुड़ जनमै धाए॥

    जिहवा एक अनेक गुण तरे नानक चरणी पाए।

    फलगुण नित सलाहीऐ जिस नो तिल तमाए॥

    जिनके हृदय में प्रभु प्रियतम प्रकट हो गया है, वे अब उसके मिलाप का आनंद पा रहे हैं। संतजन प्रभु से मिलाप के अभिलाषियों की सहायता करते हैं और फाल्गुन में होने वाला आत्मा और परमात्मा का मिलाप भी उनकी कृपा से ही हुआ है। प्रभु प्रियतम के प्रकट होने पर विरहिणी आत्मा को सभी सुख प्राप्त हो गए हैं। उसे अपने हृदय की सेज सुंदर और मोहिनी लगती है। अब वियोग के कारण उसे दुःखी होने की कोई गुंजाइश नहीं है। उस सौभाग्यवती की प्रभुरूपी पति को प्राप्त करने की इच्छा पूरी हो गई है और वह अपनी सखियों से मिलकर प्रभु के मंगल गीत गा रही है। हरि अपने जैसा आप ही है। कोई और उसके जैसा नहीं हो सकता। उसने कृपा करके प्रेमी जीवात्मा के लोक और परलोक दोनों सँवार दिए हैं। उसे अपने परमधाम में स्थान देकर उसे भवसागर से उबार लिया है। बार-बार जन्म लेने का उसका चक्कर समाप्त हो गया है। गुरु साहिब बताते हैं कि हमारी जिह्वा एक है और प्रभु के गुण अनंत हैं। हम उस प्रभु के गुण कैसे बखान कर सकते हैं? जो भी जीव भवसागर से पार उतरा है, उसके चरणों की शरण प्राप्त करके ही उतरा है। फाल्गुन का यही उपदेश है कि उस प्रियतम की सदा महिमा करनी चाहिए जो सर्वसमर्थ दाता है और जिसकी अपनी कोई ग़रज़ नहीं है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु अर्जुन देव (पृष्ठ 243)
    • संपादक : महिंदर सिंह जोशी
    • रचनाकार : गुरु अर्जुनदेव
    • प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास
    • संस्करण : 2012

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