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श्रीलाल शुक्ल के उद्धरण

यह आदत उन्होंने तभी से डाल ली थी जब से उन्हें विश्वास हो गया था कि जो ख़ुद कम खाता है, दूसरों को ज़्यादा खिलाता है; ख़ुद कम बोलता है, दूसरों को ज़्यादा बोलने देता है; वही ख़ुद कम बेवकूफ़ बनता है, दूसरे को ज़्यादा बेवकूफ़ बनाता है।