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कृष्ण कुमार के उद्धरण

यदि संसार को देखने में भाषा-शिक्षण ने कोई नया या निराला आयाम नहीं जोड़ा तो उसकी ज़रूरत क्या है और उसे गणित और विज्ञान के समतुल्य एक शिक्षण-विषय क्यों माना जाए?