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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

विश्वजगत में मनुष्य का जो इंद्रिय-बोधगम्य था, उसे ही समस्त देशों के, समस्त युगों के मनुष्यों की बुद्धि ने ज्ञान के योग से अपने विशेष अधिकार में ले लिया।

अनुवाद : चंद्रकिरण राठी