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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

वास्तविकता हमेशा, अनिवार्य रूप से अटूट नियम की भाँति उलझी हुई होती है। उसमें दिक् और काल, भूगोल और इतिहास, व्यक्ति और समाज, चरित्र और परिस्थिति, आलोचक मन और आलोचित आत्म-व्यक्तित्व—आदि-आदि घनिष्ठ रूप में बिंधे हुए होते हैं।