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राधावल्लभ त्रिपाठी के उद्धरण

वाल्मीकि में मनुष्य की अस्मिता और स्वतंत्रता का उद्घोष है, तुलसी में मनुष्य की सार्थकता पूर्ण समर्पण में है।