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राधावल्लभ त्रिपाठी के उद्धरण

वाल्मीकि के कवि रूप का आकलन सुकर कार्य नहीं है। शिल्प के स्तर पर वे नितांत प्रचलित, लोकभाषा में व्यवहृत शब्दों को उनकी सप्राणता और सहजता की क्षति किए बिना, अकल्पित सामर्थ्य से भर देते हैं।