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हजारीप्रसाद द्विवेदी के उद्धरण

वस्तुतः ज्ञान दोमुँहा पदार्थ है। उसके एक ओर तथ्य है, दूसरी ओर सत्य। सभी तथ्य सत्य नहीं होते। ऐसा कह सकते हैं कि तथ्यों के भीतर सत्य ओत-प्रोत होकर वर्तमान रहता है।