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प्रेमचंद के उद्धरण

वह ऐसा प्रेम चाहती थी, जिसके लिए वह जिए और मरे, जिस पर वह अपने को समर्पित कर दे। वह, केवल जुगनू की चमक नहीं, दीपक का स्थायी प्रकाश चाहती थी।