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जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

त्याग और क्षमा, तप और विद्या, तेज और सम्मान के लिए है-लोहे और सोने के सामने सिर झुकाने के लिए हम लोग ब्राह्मण नहीं बने हैं।