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कुबेरनाथ राय के उद्धरण

तीसवाँ वर्ष जीवन के सम्मुख फण उठाए एक प्रश्न-चिह्न को उपस्थित करता है और उस प्रश्न-चिन्ह को पूरा-पूरा उसका समाधान-मूल्य हमें चुकाना ही पड़ता है।