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मैनेजर पांडेय के उद्धरण

सूरदास के बहुत पहले से भक्ति और काव्य के क्षेत्र में राधा का परकीया रूप स्वीकृत था, लेकिन सूरदास ने उसे स्वीकार नहीं किया। सूर ने राधा को स्वकीया के रूप में ही उपस्थित किया है।