विनोद कुमार शुक्ल के उद्धरण

सृष्टि में पृथ्वी का भी अकेलापन होगा। परंतु एक मनुष्य का अकेलापन सृष्टि के अकेलेपन से भी बड़ा होता होगा। एक मनुष्य के अनेक दुःख सुख थे।
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