शुद्ध भक्ति का प्रायः लोप हो गया है क्योंकि भक्तों ने भक्ति को सस्ता बना दिया है। भगवान् तो कहता है कि भक्त वही बन सकता है जो सुधन्वा की तरह उबलते हुए तेल में कूद पड़े और हँसे अथवा जो प्रह्लाद की तरह प्रसन्न बदन जलते हुए स्तंभ को भेंट करे जैसे परम मित्र की।