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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

शृंगार-भक्ति का रूप उसी वर्ग में सर्वाधिक प्रचलित हुआ, जहाँ ऐसी शृंगार-भावना के परिपोष के लिए पर्याप्त अवकाश और समय था—फुर्सत का समय।