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श्रीलाल शुक्ल के उद्धरण

राजभाषा बनते ही हिंदी की हैसियत राजकवि, राजवैद्य या राजपुरोहित की-सी हो गई है, जिसका पूजा से कोई संबंध रखना ज़रुरी नहीं है।