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श्यामसुंदर दास के उद्धरण

सौन्दर्यप्रियता की भावना ही शुद्ध साहित्य को एक ओर तो जटिल और नीरस दार्शनिक तत्वों से अलग करती तथा दूसरी ओर उसे मानव-मात्र के लिए आकर्षक बनाती है।