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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

सत्य ही मनुष्य का प्रकाश है। इस सत्य के विषय में उपनिषद् का कहना है : 'आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति।'

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे