Font by Mehr Nastaliq Web

रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

समाज में जब कोई प्रबल, संक्रामक भावना जाग उठती है तो वह किसी वेष्टन को नहीं मानती।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे