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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

समाज में सदा ही शक्तिमान लोग नहीं होते लेकिन देश की शक्ति अलग-अलग स्थानों पर जमा ऐसे लोगों की प्रतिक्षा करती है।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे