रात्रि पृथ्वी के खुले बालों की तरह है, जो पीठ ढककर एड़ी तक लटकते हैं। लेकिन नक्षत्र-जगत् लक्ष्मी के शुभ्र ललाट पर एक काले तिल के बराबर भी नहीं है। इन तारिकाओं में से कोई यदि अपनी साड़ी से इस कालिमा को पोंछ दे; तो आँचल में जो दाग़ लगेगा, वह इतना छोटा होगा कि किसी निंदक की सूक्ष्म दृष्टि को भी दिखाई नहीं पड़ेगा।