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मनोहर श्याम जोशी के उद्धरण

प्यार, लिप्सा और वर्जना के ख़ानों पर ज़माने-भर के भावनात्मक मोहरों से खेली जानेवाली शतरंज है। अंतरंगता खेल नहीं है, उसमें कोई जीत-हार नहीं है, आरम्भ और अंत नहीं है। प्यार एक प्रक्रिया है, अंतरंगता एक अवस्था।