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प्रेमचंद के उद्धरण

पुस्तक पढ़ना तो चाहते हैं, पर गाँठ का पैसा ख़र्च करके नहीं। जिनकी माकूल आमदनी है वह भी पुस्तकों की भिक्षा माँगने में नहीं शरमाते।