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श्रीलाल शुक्ल के उद्धरण

प्रणय-तत्त्व ही चरम-सत्य है। इसी के आधार पर मानव रोदसी-रमण करता है, आकाश-आस्फालन करता है, महीधरों का मर्दन करता है। विच्छुरितवसन बनता है। भवन-भस्मीकर की उपाधि पाता है।