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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

प्रकृत-साहित्य में हम अपनी कल्पना को, अपने सुख-दुख को शुद्ध वर्तमान काल में नहीं, शाश्वत काल में प्रतिष्ठित करना चाहते हैं।

अनुवाद : अमृत राय