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हजारीप्रसाद द्विवेदी के उद्धरण

प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की ज़रूरत होती है।